Wednesday, April 27, 2016

नशीले पदार्थ के दुष्परिणाम,Drug side effects and interactions,

 

भारत में तम्बाकू की सम्पूर्ण पैदावार का 19 प्रतिशत से भी ज्यादा भाग खाने-चबाने के प्रयोग में लाया जाता है। उत्तर प्रदेश में तम्बाकू की सर्वाधिक खपत गुटखा के रूप में हो रही है। गुटखा में मिला 'गैम्बियर' कैंसर पैदा करता है। तम्बाकू में हाइड्रोजन साइनाइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, अमोनिया और फर्मेल्डिहाइड जैसे अत्यत नुकसानदेह पदार्थ मिले होते है, जो कालातर में मुख कैंसर और अन्य प्रकार के कैंसर का कारण बनते हैं। पेश हैं मुख कैंसर से सबधित कुछ तथ्य
  • पान मसाला व गुटखा चबाने वालों को पद्रह से बीस सालों में कैंसर होने की सभावना होती है। जबकि मुख कैंसर की पूर्व अवस्थाएं जैसे ल्यूकोप्लेकिया, सबम्यूकसफायब्रोसिस और लाइकेन प्लेनस की शुरुआत एक-दो साल में ही हो सकती है। 
  • यदि किसी व्यक्ति का मुख चार से.मी. से कम खुल रहा है या उसके मुख में भूरे, लाल या काले चकत्ते हैं, तो उसे कैंसर विशेषज्ञ से परामर्श शीघ्र ही लेना चाहिए। 
  • यदि मुख में कोई ऐसा छाला हो गया है, जो 8 से 10 दिन के उपचार के बाद भी ठीक नहीं हो रहा है तो कैंसर विशेषज्ञ को अवश्य दिखा लेना चाहिए। 
  • मुख कैंसरों के अधिकाश मामलों में अब मास का टुकड़ा काटकर बॉयोप्सी करने की आवश्यकता नहीं होती। कैंसरग्रस्त भाग से मात्र कुछ कोशिकाएं खुरच कर निकाल ली जाती हैं और उनकी जाच करके कैंसर की मौजूदगी का पता लगाया जाता है। 
  • लेजर सर्जरी के द्वारा मुख कैंसर की पूर्वावस्था ल्यूकोप्लेकिया को वाष्पीकृत करके पूर्णतया समाप्त किया जा सकता है। 
  • मुख कैंसर के 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में इपीडरमल ग्रोथ फैक्टर की मौजूदगी पायी जाती है। ऐसे रोगों में टारगेटेड थेरैपी 'जेफ्टीनिब' को शोधों में प्रभावी पाया गया है। 
  • मुख कैंसर से बचाव के लिये टमाटर में मौजूद 'लाइकोपिन' की दवा प्रभावी पायी गयी है। 
  • आवला, आम और हल्दी के सेवन से भी मुख कैंसर की रोकथाम की जा सकती है। 
  • प्रारंभिक अवस्था में मुख कैंसर का उपचार शल्य चिकित्सा के बगैर रेडियोथेरैपी और कीमोथेरैपी से किया जा सकता है और चेहरे को कुरुप होने से बचाया जा सकता है। 
  • कैंसर की नयी दवाओं जैसे सिटुक्सीमैब और हाइटेक रेडियोथेरैपी जैसे आई.एम.आर.टी. और ब्रेकीथेरैपी के इस्तेमाल से उपचार को अधिक कारगर व सुरक्षित बनाया जा सकता है

नशा का कारण -

    • सबसे पहले हम यह जाने कि नशाखोरी के कारण क्या हैं? लोग मजा पाने के लिए नशा करते हैं। दरअसल नशा चीज ही ऐसी है कि जो खून में जाते ही आदमी को खुशी और स्फूर्ति का एहसास कराती है। कुछ लोग अपने दोस्तों के दबाव में आकर नशा करने लगते हैं। 
    • तीसरा कारण है सुलभता। पहले जिस शराब की बोतल खरीदने के लिए लोगों को दूर जाना पड़ता था, अब वह आसानी से मिल जाती है। जगह-जगह ठेके खुले हैं। 
    • चौथा कारण है तनाव, जिसके कारण इंसान नशा करता है। बहुत सी संस्थाए नशे की रोकथाम के लिए बहुत से प्रयत्न कर रही है। परंतु अच्छे नतीजे नहीं मिल रहे। कुछ समय के लिए तो व्यक्ति शराब छोड़ देता है, परंतु बाद में फिर शुरू हो जाता है। 
    • अगर व्यक्ति सच में बदलना चाहता है तो उसे जरूरत है भीतर से जागरूक होने की क्योंकि सबसे बड़ी बात है मन पर काबू पाना और वह केवल ब्रह्मज्ञान से ही हो सकता है।
    • दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान में ऐसे अनेकों लोग हैं जिन्होंने इस ज्ञान को प्राप्त किया और आज नशे के चुंगल से बिल्कुल छूट चुके हैं और साथ ही बढिय़ा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आमतौर पर समाज में यह धारणा है कि नशा करना मर्दों की फितरत है. 
    • समाज में पुरुषों को ही नशा करने का अधिकार है. अगर महिलाएं इस तरह की करतूत करती हैं तो उन्हें कुल विरोधी या कुल का नाश करने वाला माना जाता है. लेकिन बदलते समाज के साथ-साथ लोगों की सोच बदली है. आज महिलाएं पुरुषों के साथ कदमताल कर रही हैं.
    • वह किसी भी क्षेत्र में अपने आप को कम नहीं आंकतीं. अगर पुरुष धूम्रपान करता है तो वहां भी वह अपने आप को बीस साबित कर रही हैं. लेकिन एक नए शोध से पता चला है कि आज की तारीख में धूम्रपान करने वाली महिलाओं की मौत के आसार बढ़ रहे हैं. 
    • आज अगर कोई सिगरेट पीता है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष तो उसकी इस हरकत को हाई स्टेटस के साथ जोड़कर देखा जाता है. पुरुषों की तरह महिलाएं भी कम उम्र में सिगरेट पीना शुरू कर देती हैं. कहीं-कहीं तो यह भी देखा गया है कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले बहुत ही ज्यादा सिगरेट पीती हैं. उनकी यही आदत स्वास्थ्य को बहुत ही ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है. इन्हीं आदतों की वजह उनमें फेफड़ों के कैंसर का रिस्क बढ़ गया है.
    • न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसन में छपे शोध के मुताबिक धूम्रपान के कारण अब पुरुषों की ही तरह महिलाएं भी बड़ी संख्या में मर रही हैं. सिगरेट का अधिक सेवन करने से वर्ष 2000 से 2010 के बीच धूम्रपान करने वाली महिलाओं में लंग कैंसर से मौत की आशंका सामान्य लोगों के मुकाबले 25 गुना हो गई थी. शोध में अमरीका की 20 लाख से ज्यादा महिलाओं से इकट्ठा किए डेटा पर नजर डाली गई है.तंबाकू – तंबाकू में निकोटिन,कोलतार,आर्सेनिक और कार्बन मोनो आक्साइड जैसी अत्यंत खतरनाक गैसें होती हैं इसके सेवन से तपेदिक, निमोनिया और सांस की बीमारियों सहित मुख, फेफड़े और गुर्दे में कैंसर होने की संभावनाएं रहती हैं। इससे उच्च रक्तचाप की शिकायत भी रहती है।
    • अफीम, चरस, हेरोइन तथा स्मैक आदि से व्यक्ति पागल तथा सुप्तावस्था में आ जाता है।
    • शराब – शराब के सेवन से लिवर खराब हो जाता है
    • कोकीन, चरस, अफीम से ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ है जिसके प्रभाव में व्यक्ति अपराध कर बैठता है।
    • धूम्रपान- करता है तो उसका बुरा प्रभाव भी हमारे शरीर पर पड़ता है। इसलिए न खुद धूम्रपान करें और न ही किसी को करने दे।
    • कोक,पेप्सी,चाय और कॉफी – दिल कि धड़कन, दांतों के रोग, गले के रोग, बदहजमी आदि रोग बढ़ जाते हैं। कोक जैसे ठंडे पेय घातक हैं कभी ना पियेँ।

      नशे की प्रमुख चार अवस्थायें

      • प्रारम्भिक अवस्था या प्रयोगात्मक अवस्था – जब कोई भी व्यक्ति मादक पदार्थों की ओर आकर्षित होकर प्रथम बार उसको सेवन करता है वह इसी भ्रम में रहता है कि मैं तो सिर्फ शौक के लिये इसका सेवन कर रहा हूँ तथा मै जब चाहूँ इसको बन्द (छोड़) कर सकता हूँ।
      • कभी – कभी प्रयोग – जब सेवनकर्ता प्रयोगात्मक अवस्था को बार-बार दोहराता है तो उसका शरीर लगातार मादक पदार्थों की मांग करता है प्रयोगकर्ता अनियमित रूप से विभिन्न अवसरों पर संकोच छोड़कर प्रयोग करता है तथा उसकी झिझक खत्म हो जाती है वह मादक पदार्थों के प्रयोग में अपने-आपको ऊर्जावान-हल्का-फुल्का महसूस करता है।
      • आदी हो जाना – कुछ ही समय बाद नशा करने वाला व्यक्ति नशीले पदार्थों को दैनिक या दिन में कई बार लेना शुरू करता है अगर वह नियत अन्तराल या समय पर नशीला पदार्थ नहीं लेता तो उसके अन्दर बैचेनी, अवसाद, शरीर टूटना, बुखार इत्यादि लक्षण (विदड्राल सिम्पटम्स) उभरते हैं जिससे वह किसी भी कीमत पर नशे को प्राप्त करता है तथा नशे को प्राप्त करने के लिये कोई भी कार्य यहां तक झूठ बोलना, चोरी करना, यहां तक कि किसी के प्रति हत्या तक का जघन्य कृत्य कर सकता है।
      • विभिन्न नशीले पदार्थों के सेवन करने वाले के लक्षण
      • कोकीन, कोडीन, मार्फीन का सेवन करने वाले व्यक्ति के नासाद्वार लाल होना, फटे हुये होना, नाक बहना।
      • एम्फीटामीन के नशे को करने वाले के शरीर से अधिक पसीना आना, बदबु आना, होंठ कटे-फटे होना, होठों को गीला करने के लिय लगातार जीभ फराना। बार-बार हाथ कांपना। शरीर का बजन कम होना।
      • अफीम, भांग, एच.जे.डी. का नशेड़ी अपनी फैली हुई, असामान्य आंखे छुपाने के लिये नजरे बचाता है तथा बिना जरूरत के चश्मे का प्रयोग करता है।
      • हेरोइन का सेवन करने वाले का लगातार शरीर का वजन कम होना, शरीर पर सुईयों के निशान होना, कलाईयों हाथों पर विशेष रूप से, गम्भीर किस्म के नशेड़ी अपने हाथ, पैर, गर्दन सभी जगह नशा करने के लिये अपने शरीर को गाड़ते हैं।
      • मार्फीन का अधिक सेवन करने पर यह रक्तचाप कम करती है यह श्वसद दर 18 से हटाकर-3-4 तक कर देती है।
      • एम्फीटामीन का रोगी एक काम को बार-बार करता रहेगा जैस-लगातार या बूट पालिस करना, लगातार अपने हाथ धोना, या कमरे का सामान इधर-उधर फैलाकर दोबारा व्यवस्थित करना।
      • अल्कोहल का सेवन करने वाला व्यक्ति बहकी-बहकी बातें करना, व्यर्थ की डींग हांकना, लड़खड़ाकर चलना, मुंह से बदबू आना। लगातार सेवन करने वाले का शरीर अस्त-व्यस्त रहना।
      • तम्बाकू बीड़ी, सिगरेट का नशा करने वाले के शरीर के पसीने से, सांस से तम्बाकू की दुर्गन्ध् आना, लगातार खांसी करना, सीढीयां चढ़ते-चढ़ते हांफना।
      • कोकीन,
      • कोकीन के प्रयोग से शरीर में डोपामीन की मात्रा को बढ़ने लगती है। कोकीन हमारे नटर्स सिस्टम में डोपामीन नामन रसायन न्यूटोट्रासमीटर्स के अन्दर सन्देशों के आदान-प्रदान में काम आता है कोकीन से इसकी संख्या बढ़ जाती है तथा यह नवर्स सिस्टम को अनियंत्रित कर देती है।
      • लक्षण: सिरदर्द, उबकाई, हाथ पैरों चेहरे की मांसपेशियों में खिचाव, नब्ज की गति, रक्त चाप, तापमान में बढ़ोतरी, श्वास की दर का बढ़ना, कोकीन 30 मिनट के अन्दर ही अपना प्रभाव शुरू कर देती है ज्यादा मात्रा में लेने से, ऐठन, झटके लगना तथा बेहोशी व कभी-कभी तो मृत्यु भी हो जाती है।

      एम्पफीटामीन

        • पहली अवस्था में बैचेनी, चिड़चिड़ापन पसीने-पसीने होना, चेहरा भभकना, हाथ-पैर कंपकपाना, नींद की कमी।
        • दूसरी अवस्था – अति सक्रियता, भ्रम, कल्पना, ब्लड-प्रेशर, शरीर का तापमान, श्वसन दर बढ़ जाती है।
        • तीसरी अवस्था – उन्माद, खुद को चोट पहुंचाना और रक्तचाप, शरीर का तापमान, श्वसन दर में और बढ़ोतरी होती है।
        • चौथी व अन्तिम अवस्था – बेहोशी, दौरा पड़ना व बेहोशी में मौत हो जाना। एम्फीटामीन छोड़ते समय रोगी को तन्द्रा व उदासी के लक्षण होते हें जो छोड़ने के बाद 3-4 दिन तक बढ़ते जाते हैं अवसाद के लक्षण बढ़ने पर रोगी दोबारा अम्फीटामीन की खुराक लेता है

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