आचार्य चाणक्य का जन्म पाटलिपुत्र (अभी हम जिसे पटना कहते है ) के नजदीक कुसुमपुर गांव में एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनका जनम एक ब्राह्मिण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चणक था जो स्वयं एक गुरु थे उन्होंने अपने पुत्र का नाम चाणक्य रख दिया। अपने उग्र और गूढ़ स्वभाव के कारण वे ‘कौटिल्य’ भी कहलाये. उनका एक नाम ‘विष्णुगुप्त’ भी था।
चाणक्य की आरंभिक शिक्षा गुरु चणक द्वारा ही दी गई। संस्कृत ज्ञान तथा वेद-पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन चाणक्य ने उन्हीं के निर्देशन में किया। चाणक्य मेधावी छात्र थे। गुरु उनकी शिक्षा ग्रहण करने की तीव्र क्षमता से अत्यंत प्रसन्न थे। उस काल में तक्षशिला एक विख्यात विश्व-विद्यालय था, जो सिंधु नदी के किनारे बसे नगर के रूप में था। विश्व विद्यालय में प्रख्यात विद्वान तथा विशेषज्ञ प्रोफेसरों के रूप में छात्रों को शिक्षा देते थे। तक्षशिला में शिक्षा ग्रहण करने के लिए दूर-दूर से राजकुमार, शाही परिवारों के पुत्र, ब्राह्मणों, विद्वानों, धनी लोगों तथा उच्च कुलों के बेटे आते थे। 14 वर्ष के अध्ययन के बाद 26 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी समाजशास्त्र, राजनीती और अर्थशास्त्र की शिक्षा पूर्ण की और नालंदा में उन्होंने शिक्षण कार्य भी किया।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार मगध के राजदरबार में किसी कारण से उनका अपमान किया गया था, तभी उन्होंने नंद – वंश के विनाश का बीड़ा उठाया था. उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) को राजगद्दी पर बैठा कर वास्तव में अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली तथा नंद – वंश को मिटाकर मौर्य वंश की स्थापना की ! चाणक्य देश की अखण्डता के भी अभिलाषी थे, इसलिये उन्होंने चंद्रगुप्त व्दारा यूनानी आक्रमणकारियों को भारत से बाहर निकलवा दिया और नंद – वंश के अत्याचारों से पीड़ित प्रजा को भी मुक्ति दिलाई !
आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के सर्वाधिक प्रखर कुटनीतिज्ञ माने जाते है ! उन्होंने ‘अर्थशास्त्र’ नामक पुस्तक में अपने राजनैतिक सिध्दांतों का प्रतिपादन किया है, जिनका महत्त्व आज भी स्वीकार किया जाता है ! कई विश्वविद्यालयों ने कौटिल्य (चाणक्य) के ‘अर्थशास्त्र’ को अपने पाठ्यक्रम में निर्धारित भी किया है ! महान मौर्य वंश की स्थापना का वास्तविक श्रेय अप्रतिम कूटनीतिज्ञ चाणक्य को ही जाता है! चाणक्य एक विव्दान, दूरदर्शी तथा दृढसंकल्पी व्यक्ति थे और अर्थशास्त्र, राजनीति और कूटनीति के आचार्य थे !
चाणक्य का नाम राजनीती, राष्ट्रभक्ति एवं जन कार्यों के लिए इतिहास में सदैव अमर रहेगा. बच्चों को सूझबूझ सिखाने व नैतिक शिक्षा देने के लिए पंचतंत्र की रचना की जो आगे जाकर विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर बन गया व संसार के हर बच्चे का मार्गदर्शन करने लगा।
ऐसे प्रतिभाशाली थे चाणक्य। उनकी जीवन कथा स्वयं एक शिक्षाप्रद क्रमिक विकास की कहानी है। जिसे पढ़ना हर भारतीय का गौरव है। लगभग 2300 वर्ष बीत जाने पर भी उनकी गौरवगाथा धूमिल नहीं हुई है. चाणक्य भारत के इतिहास के एक अत्यन्त सबल और अदभुत व्यक्तित्व हैं. उनकी कूटनीति को आधार बनाकर संस्कृत में एक अत्यन्त प्रसिध्द ‘मुद्राराक्षस’ नामक नाटक भी लिखा गया है। बच्चों को सूझबूझ सिखाने व नैतिक शिक्षा देने के लिए पंचतंत्र की रचना की जो आगे जाकर विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर बन गया व संसार के हर बच्चे का मार्गदर्शन करने लगा।
चाणक्य की आरंभिक शिक्षा गुरु चणक द्वारा ही दी गई। संस्कृत ज्ञान तथा वेद-पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन चाणक्य ने उन्हीं के निर्देशन में किया। चाणक्य मेधावी छात्र थे। गुरु उनकी शिक्षा ग्रहण करने की तीव्र क्षमता से अत्यंत प्रसन्न थे। उस काल में तक्षशिला एक विख्यात विश्व-विद्यालय था, जो सिंधु नदी के किनारे बसे नगर के रूप में था। विश्व विद्यालय में प्रख्यात विद्वान तथा विशेषज्ञ प्रोफेसरों के रूप में छात्रों को शिक्षा देते थे। तक्षशिला में शिक्षा ग्रहण करने के लिए दूर-दूर से राजकुमार, शाही परिवारों के पुत्र, ब्राह्मणों, विद्वानों, धनी लोगों तथा उच्च कुलों के बेटे आते थे। 14 वर्ष के अध्ययन के बाद 26 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी समाजशास्त्र, राजनीती और अर्थशास्त्र की शिक्षा पूर्ण की और नालंदा में उन्होंने शिक्षण कार्य भी किया।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार मगध के राजदरबार में किसी कारण से उनका अपमान किया गया था, तभी उन्होंने नंद – वंश के विनाश का बीड़ा उठाया था. उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) को राजगद्दी पर बैठा कर वास्तव में अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली तथा नंद – वंश को मिटाकर मौर्य वंश की स्थापना की ! चाणक्य देश की अखण्डता के भी अभिलाषी थे, इसलिये उन्होंने चंद्रगुप्त व्दारा यूनानी आक्रमणकारियों को भारत से बाहर निकलवा दिया और नंद – वंश के अत्याचारों से पीड़ित प्रजा को भी मुक्ति दिलाई !
आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के सर्वाधिक प्रखर कुटनीतिज्ञ माने जाते है ! उन्होंने ‘अर्थशास्त्र’ नामक पुस्तक में अपने राजनैतिक सिध्दांतों का प्रतिपादन किया है, जिनका महत्त्व आज भी स्वीकार किया जाता है ! कई विश्वविद्यालयों ने कौटिल्य (चाणक्य) के ‘अर्थशास्त्र’ को अपने पाठ्यक्रम में निर्धारित भी किया है ! महान मौर्य वंश की स्थापना का वास्तविक श्रेय अप्रतिम कूटनीतिज्ञ चाणक्य को ही जाता है! चाणक्य एक विव्दान, दूरदर्शी तथा दृढसंकल्पी व्यक्ति थे और अर्थशास्त्र, राजनीति और कूटनीति के आचार्य थे !
चाणक्य का नाम राजनीती, राष्ट्रभक्ति एवं जन कार्यों के लिए इतिहास में सदैव अमर रहेगा. बच्चों को सूझबूझ सिखाने व नैतिक शिक्षा देने के लिए पंचतंत्र की रचना की जो आगे जाकर विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर बन गया व संसार के हर बच्चे का मार्गदर्शन करने लगा।
ऐसे प्रतिभाशाली थे चाणक्य। उनकी जीवन कथा स्वयं एक शिक्षाप्रद क्रमिक विकास की कहानी है। जिसे पढ़ना हर भारतीय का गौरव है। लगभग 2300 वर्ष बीत जाने पर भी उनकी गौरवगाथा धूमिल नहीं हुई है. चाणक्य भारत के इतिहास के एक अत्यन्त सबल और अदभुत व्यक्तित्व हैं. उनकी कूटनीति को आधार बनाकर संस्कृत में एक अत्यन्त प्रसिध्द ‘मुद्राराक्षस’ नामक नाटक भी लिखा गया है। बच्चों को सूझबूझ सिखाने व नैतिक शिक्षा देने के लिए पंचतंत्र की रचना की जो आगे जाकर विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर बन गया व संसार के हर बच्चे का मार्गदर्शन करने लगा।
चाणक्य का निरादर और प्रतिशोध की शपथ
चाणक्य एक बार राजा से मिलने पाटलीपुत्र आये | वो देशहित के लिए धनानन्द को प्रेरित करने आये थे ताकि वो छोटे छोटे राज्यों में बंटे देश को आपसी वैर भावना भूलकर एकसूत्र में पिरो सके | लेकिन धनानन्द ने चाणक्य के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और उन्हें अपमानित क्र दरबार से निकाल दिया | इससे चाणक्य के स्वाभिमान को गहरी चोट पहुची और वो बहुत क्रोधित हुए | अपने स्वाभाव के अनुकूल उन्होंने अपनी चोटी खोलकर दृढ़ संकल्प किया की जब तक वो धनानंद का समूल विनाश नही कर देंगे तब तक अपनी चोटी को गाँठ नही लगायेंगे |
जब धनानन्द को चाणक्य के इस संकल्प का पता चला तो उसने क्रोधित होकर चाणक्य को बंदी बनाने का आदेश दे दिया | लेकिन जब तक चाणक्य को बंदी बनाया जाता , तब तक वो वहा से निक्ल चुके थे | महल से बाहर आते ही उन्होंने सन्यासी का वेश धारण किया और पाटलीपुत्र में छिपकर रहने लगे |
चाणक्य एक बार राजा से मिलने पाटलीपुत्र आये | वो देशहित के लिए धनानन्द को प्रेरित करने आये थे ताकि वो छोटे छोटे राज्यों में बंटे देश को आपसी वैर भावना भूलकर एकसूत्र में पिरो सके | लेकिन धनानन्द ने चाणक्य के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और उन्हें अपमानित क्र दरबार से निकाल दिया | इससे चाणक्य के स्वाभिमान को गहरी चोट पहुची और वो बहुत क्रोधित हुए | अपने स्वाभाव के अनुकूल उन्होंने अपनी चोटी खोलकर दृढ़ संकल्प किया की जब तक वो धनानंद का समूल विनाश नही कर देंगे तब तक अपनी चोटी को गाँठ नही लगायेंगे |
जब धनानन्द को चाणक्य के इस संकल्प का पता चला तो उसने क्रोधित होकर चाणक्य को बंदी बनाने का आदेश दे दिया | लेकिन जब तक चाणक्य को बंदी बनाया जाता , तब तक वो वहा से निक्ल चुके थे | महल से बाहर आते ही उन्होंने सन्यासी का वेश धारण किया और पाटलीपुत्र में छिपकर रहने लगे |
चाणक्य Chanakya की मृत्यु पर भी विवाद है एक किंवदंती के अनुसार चाणक्य सेवामुक्त होकर जंगल चले गये थे जहा पर उन्होंने भूखा रहकर अपने आप को मार दिया | एक दुसरे मत के अनुसार चाणक्य बिन्दुसार के एक मंत्री सुबंधु के षड्यंत्र के कारण मारे गये जिसने चाणक्य को बिन्दुसार की माँ की मौत का जिम्मेदार बताया| बिन्दुसार ने उनकी दाई से इस बात की पृष्टि भी करी और ये सुनकर भयभीत और नाराज हो गये थे |
जब चाणक्य Chanakya को इस बात का पता चला कि राजा उससे नाराज है तो उन्होंने वन में जाकर भूख से अपने आप को मार दिया | बिन्दुसार को बाद में ये ज्ञात हुआ कि चाणक्य उनकी माँ की मौत के जिम्मेदार नही बल्कि ये दुर्घटनावश हो गया था लेकिन देर हो चुकी थी | चन्द्रगुप्त के पूछताछ पर सुबंधु ने उनको चाणक्य की हत्या की योजना बताई की वो चाणक्य को एक वीरान जगह पर बुलाकर जीवित जला देना चाहता था |
चाणक्य Chanakya को भारत का सबसे महान विचारक और कूटनीतिज्ञ माना जाता है | कई राष्ट्रवादी इतिहासकारों का मानना है कि चाणक्य भारतवर्ष में एकमात्र ऐसे इन्सान हुए जिन्होंने अखंड भारत का स्वप्न देखा और उसे पूरा किया | चाणक्य को दो पुस्तको अर्थशाष्त्र और चाणक्य निति Chanakya Niti का जनक माना जाता है | चाणक्य के सम्मान में दिल्ली की एक जगह का नाम चाणक्यपुरी रखा गया और इसके अलावा कई बड़े संस्थानों के नाम भी इनके नाम पर रखे गये |
जब चाणक्य Chanakya को इस बात का पता चला कि राजा उससे नाराज है तो उन्होंने वन में जाकर भूख से अपने आप को मार दिया | बिन्दुसार को बाद में ये ज्ञात हुआ कि चाणक्य उनकी माँ की मौत के जिम्मेदार नही बल्कि ये दुर्घटनावश हो गया था लेकिन देर हो चुकी थी | चन्द्रगुप्त के पूछताछ पर सुबंधु ने उनको चाणक्य की हत्या की योजना बताई की वो चाणक्य को एक वीरान जगह पर बुलाकर जीवित जला देना चाहता था |
चाणक्य Chanakya को भारत का सबसे महान विचारक और कूटनीतिज्ञ माना जाता है | कई राष्ट्रवादी इतिहासकारों का मानना है कि चाणक्य भारतवर्ष में एकमात्र ऐसे इन्सान हुए जिन्होंने अखंड भारत का स्वप्न देखा और उसे पूरा किया | चाणक्य को दो पुस्तको अर्थशाष्त्र और चाणक्य निति Chanakya Niti का जनक माना जाता है | चाणक्य के सम्मान में दिल्ली की एक जगह का नाम चाणक्यपुरी रखा गया और इसके अलावा कई बड़े संस्थानों के नाम भी इनके नाम पर रखे गये |
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