सिजोफ्रेनिया क्या है,schizophrenia in hindi.
सिजोफ्रेनिया – इसमें रोगी सच और कल्पना के बीच का अंतर नहीं समझ पाता। यह अत्यंत गम्भीर किस्म की मानसिक बीमारी है। रोगी भारी मानसिक पीड़ा से गुजरता है। वह अपने ही विचारों में खोया रहता है। उसका मन किसी भी काम में नहीं लगता है और न ही उसे लोगों से मिलना-जुलना अच्छा लगता है। हर व्यक्ति को वह शक की निगाह से देखता है। जैसे उसके आस-पास के लोग उसके खिलाफ षडय़ंत्र रच रहे हों। उसे अजीबो-गरीब डरावनी आवाजे सुनाई पड़ती हैं, डरावनी परछाइयां दिखाई पड़ती हैं। इन सबसे घबरा कर वह हिंसा और आत्महत्या जैसे कदम तक उठाने की कोशिश करता है।
रोगी धीरे-धीरे स्वयं के प्रति उदासीन होता जाता है। यहां तक कि वह दिनचर्या के काम भी ठीक से नहीं कर पाता है। सामान्य किस्म के सिजोफ्रेनिया के मरीज गुमसुम और चुपचाप रहते हैं, कई बार तो उनकी हालत बच्चों जैसी भी हो जाती है, लेकिन गम्भीर किस्म के सिजोफ्रेनिया के रोगी हिंसक और विद्रोही हो जाते हैं। कभी-कभी वे न केवल खुद के लिए, बल्कि दूसरों के लिए भी खतरनाक हो जाते हैं। ऐसे में वे खुद को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या जैसे प्रयास भी कर सकते हैं।
रोगी धीरे-धीरे स्वयं के प्रति उदासीन होता जाता है। यहां तक कि वह दिनचर्या के काम भी ठीक से नहीं कर पाता है। सामान्य किस्म के सिजोफ्रेनिया के मरीज गुमसुम और चुपचाप रहते हैं, कई बार तो उनकी हालत बच्चों जैसी भी हो जाती है, लेकिन गम्भीर किस्म के सिजोफ्रेनिया के रोगी हिंसक और विद्रोही हो जाते हैं। कभी-कभी वे न केवल खुद के लिए, बल्कि दूसरों के लिए भी खतरनाक हो जाते हैं। ऐसे में वे खुद को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या जैसे प्रयास भी कर सकते हैं।
क्या हैं इस बीमारी के संकेत?
इस बीमारी में अलग-अलग शख्स के संकेत भी अलग-अलग होते हैं. इसमें लोगों के भीतर सिंपटम धीरे-धीरे महीनों या सालों में दिखते हैं. यह बीमारी कुछ ऐसी है कि आती-जाती रहती है.
- कुछ ऐसा देखना और सुनना जो वाकई वहां मौजूद न हो.
- आपको ऐसा लगता हो जैसे लोग आपको छिप कर देख रहे हैं.
- लिखने और बोलने के मामले में एक अजीबोगरीब पेचीदगी का होना.
- शरीर को बेढंगे तरीके से रखना.
- हर महत्वपूर्ण मौके पर अलग तौरतरीके से रिएक्ट करना.
- पढ़ाई-लिखाई से एकदम से अनमना हो जाना.
- व्यक्तित्व में बदलाव.
- किन्हीं सामाजिक जलसों से कट कर रहना.
- अपने नजदीकी और प्यार करने वालों से कटा-कटा रहना.
- सोने या फिर ध्यान केन्द्रित करने में दिक्कतें आना.
रहस्यमयी चीजों या फिर धर्म से अनावश्यक जुड़ाव रखना.
आज पूरी दुनिया की जनसंख्या के एक फीसद लोग Schizophrenia से पीड़ित हैं. अकेले अमेरिका में देखें तो सौ में से एक शख्स इस बीमारी के शिकार है. ऐसा भी नहीं है कि यह किसी वर्ग विशेष के लोगों के बीच ही व्याप्त है. यह अमूमन 13 से 25 साल के लोगों के बीच देखी जाती है. यह बीमारी महिलाओं की तुलना पुरुषों में अधिक देखी जाती है.
आज पूरी दुनिया की जनसंख्या के एक फीसद लोग Schizophrenia से पीड़ित हैं. अकेले अमेरिका में देखें तो सौ में से एक शख्स इस बीमारी के शिकार है. ऐसा भी नहीं है कि यह किसी वर्ग विशेष के लोगों के बीच ही व्याप्त है. यह अमूमन 13 से 25 साल के लोगों के बीच देखी जाती है. यह बीमारी महिलाओं की तुलना पुरुषों में अधिक देखी जाती है.
सिजोफ्रेनिया के क्या हैं कारण ?
कुछ वर्षों पहले तक इस बीमारी का वास्तविक कारण पता नहीं था, लेकिन मानव मस्तिष्क और व्यवहार पर किए गए आधुनिक शोध से पता चलता है कि यह बीमारी मस्तिष्क की रासायनिक संरचना एवं कार्य-व्यवहार में आए खास प्रकार के बदलाव के कारण होती है। यही नहीं, शोध यह भी कहते हैं कि मस्तिष्क में पाए जाने वाले स्नायु रसायन (न्यूरोकेमिकल्स)-डोपेमाइन और सेरोटोना के स्तर में परिवर्तन की वजह से भी यह बीमारी होती है। यह बीमारी तनाव के कारण नहीं होती है, लेकिन जिस व्यक्ति के अंदर आनुवांशिक तौर पर यह बीमारी होने की आशंका होती है, उसमें तनाव के कारण ही यह उभर कर बाहर आ जाती है।
कई बार ऐसी कोई घटना, जिससे व्यक्ति को शॉक लगे, उस परिस्थिति में भी वह सिजोफ्रेनिया की चपेट में आ सकता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अविवाहित पुरुष नौकरी से सम्बन्धित परेशानियों, दोस्तों एवं परिवार द्वारा नीचा दिखाने पर हीनभावना का शिकार होने के कारण भी कई बार सिजोफ्रेनिया की चपेट में आ जाते हैं।
कई बार ऐसी कोई घटना, जिससे व्यक्ति को शॉक लगे, उस परिस्थिति में भी वह सिजोफ्रेनिया की चपेट में आ सकता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अविवाहित पुरुष नौकरी से सम्बन्धित परेशानियों, दोस्तों एवं परिवार द्वारा नीचा दिखाने पर हीनभावना का शिकार होने के कारण भी कई बार सिजोफ्रेनिया की चपेट में आ जाते हैं।
किन्हें होती है सिजोफ्रेनिया की बीमारी ?
माता-पिता में किसी एक को यह बीमारी होने पर उनके बच्चे को यह बीमारी होने की आशंका 15 से 20 प्रतिशत तक होती है, जबकि माता-पिता दोनों को यह बीमारी होने पर बच्चे को यह बीमारी होने की आशंका 60 प्रतिशत तक हो सकती है। जुड़वा बच्चों में से एक को यह बीमारी होने पर दूसरे बच्चे को भी यह बीमारी होने की आशंका शत-प्रतिशत होती है। सिजोफ्रेनिया की बीमारी आम तौर पर युवावस्था में खास तौर पर 15-16 साल की उम्र में ही शुरू हो जाती है। कुछ लोगों में यह बीमारी ज्यादा तेजी से बढ़ती है और धीरे-धीरे गम्भीर रूप धारण कर लेती है।
सिजोफ्रेनिया मानसिक बीमारी है –
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सिजोफ्रेनिया को युवाओं का सबसे बड़ी क्षमतानाशक यानी डिसएब्लर बताया है। विश्व की 10 सबसे बड़ी अक्षम बनाने वाली बीमारियों में सिजोफ्रेनिया को भी शामिल किया गया है। यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जो न सिर्फ रोगी की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है, बल्कि उसके परिजनों के लिए भी एक सिरदर्द बन जाती है। यह ज्यादातर युवाओं को उस वक्त प्रभावित करती है, जब उनकी तरक्की और कार्य करने की क्षमता शिखर पर होती है। अक्सर सिजोफ्रेनिया को लोग युवावस्था की स्वाभाविक समस्या या युवाओं की सनक मानने की भूल कर बैठते हैं।
आखिर क्या है Schizophrenia की वजह?
इस बीमारी के कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो सके हैं. हालांकि, इसके लिए जेनेटिक्स (आनुवांशिकी), दिमागी कैमिस्ट्री में ऊंच-नीच, वायरल इन्फेक्शन, मौसमी फेरबदल के दौरान लापरवाही और पाचन तंत्र की गड़बड़ी को भी कारण बताया जाता है.
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